Last Updated: June 17, 2012

How to get Peace and Happiness in Life

!! विवेक चतुष्टय !!

नास्ति विद्या सम चाशुर्नास्ती सत्य समं तप: |
नास्ति राग समं दुह्खं नास्ति त्याग समं सुखम ||

इस निखिल विश्व में विद्या के समान दिव्य नेत्र नहीं है ,सत्य के समान किसी प्रकार का तप नही है क्रोध के समान कोई दुःख नही है और नही है त्याग के समान कोई परम सुख |

वस्तुत: विधा की उपलब्धि से मानव ज्ञान पुंज का संचय कर सत्कर्म में अभिरत हो परमात्म सुख की अनुभूति करता है| “ विद्यया अमृतमश्नुते ” यह उपनिषद का महा वाक्य इसी का प्रतिपादन करता है इसी प्रकार सत्य पालन से प्राणी सत्य स्वरूप भगवान श्री सर्वेश्वर के अनिर्वचनीय दर्शन कर अपरिमित आनंद सुधारस का पान कर परम तृप्त होता है | “सत्यं वद” | यह वेद का उद्गोष इसलिय पुनः संसार को सचेत एवं सावधान करता है |

क्रोध प्राणी मात्र का सबसे बड़ा शत्रु है ,इससे सभी विवेकहीन होकर अकरणीय अत्यंत नीच कर्म के करने में भी नही हिचकिचाते |इसी से तो श्रीमद्भगवद्गीता में सर्वनियन्ता भगवान सर्वेश्वर श्री श्यामसुन्दर ने अर्जुन को उपदेश करते हुये आज्ञा दी है |

क्रोधाद्भ्वती संमोह संमोहा त्स्मृति विभ्रम :|
स्मृति भ्रंशाद बुद्धि नाशो बोद्धि नशात्प्रण श्यति ||
(भगवद्गीता श्लोक)

अर्थात क्रोध से मोह की उत्पति और मोह से बुद्धि का हास और बुद्धि के ह्रास से प्राणी विनाश को प्राप्त हो जाता है

अत: मानव के तीन शत्रु दिखते नहीं है, परन्तु बहुत शक्तिशाली होते है, इनको परित्याग करके ही मानव अपना कल्याण करता है |

अहंकारं बलं दर्प कामं क्रोधो परिग्रहम् |
विमुच्य निर्मम शान्तो ब्रह्म भुयाय कल्पते ||
(भगवद्गीता श्लोक)

यह मार्मिक उपदेश कर स्पष्ट ही संकेत किया है कि अहंकार , बल, दर्प, घमंड ,काम, [सांसारिक इच्छाएँ] क्रोध और परिग्रह [संग्रह का त्याग ] करने पर प्राणी अनासक्त शांत होकर परब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण को प्राप्त कर सकता है अतः यह महाभारत का विवेक चतुष्टय परम कल्याणकारी और नितांत आवश्यक है इसका मनन करने से इन आंतरिक शत्रु पर विजय प्राप्त कर संतोष सुख को प्राप्तकरता है, इसी में हित सन्निहित है |

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