Last Updated: July 17, 2012

Incarnation Of God And Philosophy Of Lord Avatar

भगवान का अवतार (अवतरण) कब और क्यों होता है ?

Avatars of  God
भगवान का अवतार कब और क्यों होता है, इस तथ्य को जानने के लिए सबसे पहले ये जानना अतिआवश्यक है की अवतार क्या है ?


अवतार:- भगवान समय-समय पर पृथ्वी पर अवतरित होते है, और पृथ्वी पर भगवान का मानव रूप में अवतरित होना ही अवतार कहलाता है, हमारे वेदों व शास्त्रों में अवतार होने के कई व्याख्यान देखने को मिलते है, कई बार भगवान को भी विधि का विधान भोगने के लिए पृथ्वी (मृत्युलोक) पर अवतरित होना पडता है, अंतत: भगवान का मृत्युलोक में अवतरण ही अवतार कहलाता है |




अवतार कब व क्यों होता है ?

अब हमारे मन में यह प्रश्न उठता है की भगवान क्यों अवतरित होते है और कब अवतरित होते है, और भगवान के अवतार का इस पृथ्वी लोक से क्या वास्ता है | इसका सीधा सा कारण(उत्तर) यह है की भगवान ने जब सृष्टि की रचना की थी तभी उन्होंने लोकों और कालचक्र का निर्धारण कर दिया था | भगवान ने मनुष्यों, साधकों(साधुओं) और अन्य जीवों को मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी लोक, असुरों को पाताल लोक, और इसी तरह देवताओं को स्वर्ग लोक में विभाजित कर दिया | पर असुरों ने अपने तप और बल से बारम्बार पृथ्वी पर रहने वाले जीवों और साधुओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया तब भगवन अवतरित होकर उनका विनाश करने लगे | ये कई दृष्टान्त शाश्त्रों में विस्तार से दिए गए है, हम फिर से उसी पश्न पर लौटेंगे की अवतार कब व क्यों होता है |

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के समय (श्रीमद्भगवद्गीता में) अर्जुन को दिव्य ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा था कि:-

 अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन | 
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ||
 (भगवद्गीता चतुर्थोध्याय श्लोक ६ ) 

 अर्थात:- यद्यपि में अजन्मा तथा अविनाशी हूँ, और यद्यपि में समस्त जीवों का स्वामी हूँ, तो भी में प्रत्येक युग में अपने आदि दिव्य रूप में प्रकट होता हूँ |

 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति: भारत: | 
 अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम || 
 (भगवद्गीता चतुर्थोध्याय श्लोक ७ )

 अर्थात:- जब जब धर्म का ह्वास या हानि (पतन) होता है, और हे भारतवंशी अधर्म की प्रधानता होने लगती है, अर्थात मनुष्य जाति पीड़ित होकर त्राहि त्राहि करने लग जाती है, तब में धर्मं की रक्षा व उसके पुनरुत्थान के लिए अवतरित होता हूँ | अर्थात अवतार लेता हूँ |

 परित्राणाय च साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम |
 धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे || 
 (भगवद्गीता चतुर्थोध्याय श्लोक ८ ) 

 अर्थात:- भक्तों (साधुओं) का उद्धार करने, और दुष्टों (जो अधर्म के मार्ग पर चलते है) का विनाश करने तथा धर्मं की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |

 अर्थात भगवान अपने प्रिय भक्तों कि पीड़ा को हरने व उनका उद्धार करने के लिए हर युग में अवतरित (अवतार) होते है, और प्रत्येक मनुष्य को उन अविनाशी भगवान का सदैव चिंतन व स्मरण करते रहना चाहिए |

(जय श्रीकृष्ण )

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