Last Updated: September 7, 2012

Navadha Bhakti In RamcharitManas

श्री रामचरितमानस में नवधा-भक्ति 

प्रथम भक्ति संतन सत्संगा | 
दूसर मम रति कथा प्रसंगा ||

गुरु पद पंकज सेवा, तीसरी भक्ति अमान |
चौथी भक्ति मम गुन गन, करहीं कपट तजि गान ||

मंत्र जाप मम दृढ विश्वासा |
पंचम भजन सो वेद प्रकाश ||
छठ दम शील विरति बहु करमा |
निरत निरंतर सज्जन धरमा ||

सातवँ सम मोहिमय जग देखा |
मोते संत अधिक करि लेखा ||

आठवं यथा लाभ संतोषा |
सपनेहुँ नहीं देखई पर दोषा ||

नवम सरल सब सन छल हीना |
मम भरोस हियँ हरष न दीना ||

नवम हूँ एकउ जिनके होई |
नारी पुरुष सचराचर कोई ||

सोई अतिसय प्रिय भामिनी मोरे |
सकल प्रकार भगति दृढ तोरे ||
                            
                                                                  (रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में भी नवधा भक्ति का उल्लेख हुआ है | इसमें अरण्यकाण्ड में प्रभु श्री राम ने शबरी के प्रति भक्ति के इन नौ अंगों अर्थात नवधा भक्ति का उल्लेख किया है | इस प्रकार दी गई नवधा भक्ति का विधिपूर्वक अनुष्ठान और हवन करने से मनुष्य को परमपद की प्राप्ति होती है, और सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है |

No comments:

Post a Comment