Last Updated: September 7, 2012

Navadha Bhakti in Bhaagawat

श्रीमद्भागवत में नवधा-भक्ति 

NAVADHA-BHAKTI

In Hindi:-

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् |
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्म निवेदनम् ||

In English:-

Shravanam Kiratanam Vishno: Smranam Paadasevanam |
Archanam Vandanam Dasyam Sakhyamaatm Nivedanam ||
अर्थात:- श्रीमद्भागवत में  भक्त प्रह्लादजी ने कहा है कि- भगवान विष्णु के नाम,रूप, गुण और प्रभावादी का श्रवण, कीर्तन और स्मरण तथा भगवान के चरणों की सेवा, पूजन और वंदन तथा भगवान के प्रति दासभाव, सखाभाव तथा अपने आप को समर्पित कर देना | यह नौ प्रकार कि भक्ति होती है | और इसको कई प्रकार से परिभाषित किया गया है | सामान्यतया भक्ति के नौ अंग बतलाये गए है और ये है- श्रवण, कीर्तन, स्मरण, चरण सेवा, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन | ये नौ प्रकार के भक्ति के अंग होते है | इस प्रकार से नवम् अंगों को निभाते हुए भक्ति करने से साधक का उद्धार होता है और सर्व सिद्धि की प्राप्ति होती है |

तात्पर्य यह है कि भक्ति ऐसी होनी चाहिए जिससे आपके स्वामी अर्थात भगवान प्रसन्न हो जाये, अत: भक्ति इस प्रकार से करे जैसी आपके प्रभु कि इच्छा हो अर्थात स्वामी कि आज्ञा के अनुकूल आचरण ही भक्ति कहलाता है |

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