Last Updated: December 18, 2012

Significance Of Om And Omkar Mantra

ओ३म् (ॐ) या ओंकार का अभिप्राय और महत्ता

ओंकार - परमाक्षर
ओ३म् (ॐ) क्या है:- ओ३म् (ॐ) का शाब्दिक और सरल अर्थ प्रणव अर्थात परमेश्वर से है, ओ३म् वास्तविकता में सम्पूर्ण सृष्टि कि उद्भावता कि ओर संकेत करता है, कहने का तात्पर्य यह है कि ओ३म् से ही यह चराचर जगत चलायमान है और इस संसार के कण कण में ओ३म् रमा हुआ है |

ओ३म् किसी भी एक देव का नाम या संकेत नहीं है, अपितु हर धर्म को मानने वालों ने इसे अपने तरीके से प्रचलित किया है | जैसे ब्रह्मा-वाद में विश्वास रखने वाले इसे ब्रह्मा, विष्णु के सम्प्रदाय वाले वैष्णवजन इसे विष्णु तथा शैव या रुद्रानुगामी इसे शिव का प्रतिक मानते है और इसी तरीके से इसको प्रचलित करते है | परन्तु वास्तव में ओ३म् तीनों देवो का मिश्रित तत्त्व है जो कि इस प्रकार है:-


 ओ३म् (ॐ) शब्द में  "अ" ब्रह्मा का पर्याय है, और इसके उच्चारण द्वारा हृदय में उसके त्याग का भाव होता है। "उ" विष्णु का पर्याय है, इसके उच्चारण  द्वारा त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का पर्याय है और इसके उच्चारण  द्वारा त्याग तालुमध्य में होता है। इन तीनो देवों (त्रिदेवों) के संगम से यह ओ३म् (ॐ) बना है |

ओ३म् (ॐ) की महत्ता:- हम जिस ब्रह्माण्ड में रहते है उसमे ओ३म् (ॐ) सर्वव्यापी है अर्थात सभी जगह व्याप्त है | ओ३म् (ॐ) के बिना इस संसार कि कल्पना भी नहीं कि जा सकती है | जब आप योग या ध्यान कि मुद्रा में बैठते होंगे तब आपको महसूस होता होगा कि बिना ओ३म् (ॐ) का जाप किये ही आपको अपने आप ही अनवरत रूप से ओ३म् (ॐ) कि ध्वनि आ रही है | यह तभी होता है जब आप ध्यान कि मुद्रा में पूर्ण रूप से खो जाते है अर्थात चरम तक पहुच जाये |  ईश्वर का वाचक प्रणव 'ॐ' है, तथा इसी ओम् में सारी सृष्टि समायी हुई है |

ओम् कि महत्ता तो यहाँ तक है कि माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में   ओ३म् (ॐ) की ध्वनि से पूर्ण ब्रह्माण्ड गुन्जायमान रहता है | तथा इस  ओ३म् (ॐ) मंत्र को परम पवित्र और परम शक्तिशाली माना जाता है | यह  ओ३म् (ॐ) ही हमारे प्राण अर्थात श्वास को नियंत्रित करता है तभी तो मनुष्य को श्वास लेते समय  ओ३म् (ॐ) कि ध्वनि का अहसास होता है |
तथा शास्त्रों में कहा गया है कि  ओ३म् (ॐ) मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र है और इसका प्रभाव भी त्वरित होता है एवं  ओ३म् (ॐ) को किसी मंत्र के साथ जोड़ दिया जाये तो वह मंत्र पूर्णतया शुद्ध, पवित्र और शक्तिशाली हो जाता है | 

तभी तो शास्त्रानुसार सभी मन्त्रों के पूर्व  ओ३म् (ॐ) लगाने का विधान है, जैसे श्रीराम का मंत्र — ॐ रामाय नमः, भगवान विष्णु का मंत्र — ॐ विष्णवे नमः, भगवन शिव का मंत्र — ॐ नमः शिवाय, आदि अत्यधिक प्रचलित है। कहा जाता है कि ॐ से रहित कोई मंत्र फलदायी नही होता , चाहे उसका कितना भी जाप हो। मंत्र के रूप में मात्र ॐ भी पर्याप्त है। माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हज़ार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है । ॐ का दूसरा नाम प्रणव ( परमेश्वर ) है। "तस्य वाचकः प्रणवः" अर्थात् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। ॐ अक्षर है इसका क्षय तथा विनाश नहीं होता ।

ओ३म् (ॐ) का मार्मिक महत्व समझने के लिए उदारहण लेते है कि कोई मनुष्य संगीत कि दीक्षा लेने गुरु के पास जाता है तो गुरुजी सबसे पहले शिष्य को सुर (सा, रे गा, मा..) और ताल तथा रियाज (अभ्यास) करने को कहते है, पर कभी मंथन किया है कि जब संगीतकार लयबद्ध होकर निरंतर सुर को ऊँचा करता जाता है और तथा श्वास को रोके हुए सुर लेता है तो उसमे भी ओ३म् (ॐ) कि श्वनी आती है | अर्थात तात्पर्य यह है कि जब मनुष्य अपने से ऊपर उठकर उस परमात्मा के संपर्क में आता है तब ओ३म् (ॐ) का अनुभव अपने आप ही होने लगता है |

ओंकार का अभिप्राय और महत्ता:- ओ३म् (ॐ) + कार शब्द से ओंकार बना है जो कि ओ३म् (ॐ) का कार्य को प्रतिपादित करता है | अर्थात "अ" (ब्रह्मा) का कार्य सृष्टि की रचना है, "उ" (विष्णु) का कार्य सृष्टि के पालनपोषण का है तथा "म्" (शिव) का कार्य सृष्टि का संतुलन बनाये रखना अर्थात शिव संहारक है | अब सभी को यह भलीभाँति पता चल गया होगा कि ओ३म् (ॐ) तथा ओंकार के बिना संपूर्ण ब्रह्माण्ड अधूरा है तथा इस ब्रह्माण्ड में ओ३म् (ॐ) से बढ़कर कोई नहीं है |

ओ३म् (ॐ) तथा ओंकार से कार्य सिद्धि:- ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का कर्ता-धर्ता है । केवल ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली। गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में उल्लेख है कि जो कोई भी श्रृद्धा सहित कुश के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर एक हज़ार बार ॐ के मंत्र का जाप करता है, उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। तथा उसे परम तत्त्व कि प्राप्ति होती है |

ओ३म् (ॐ) के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें:- ओ३म् (ॐ) और ओंकार

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