Last Updated: August 9, 2012

Significance Of Shri Krishna Janmashtami

पुराणों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महात्म्य 

Yogeshwar Shree Krishna
भगवान श्रीकृष्ण, पापों को हरण करने वाले और मनमोहन छवि वाले श्यामसुन्दर का जन्मदिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मन से मनाया जाता है | इस दिन पुरे विश्व के कृष्ण भक्त वर्त या उपवास रखते है |


भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता का उपदेश देकर विश्व का कल्याण किया और धर्म की पुनर्स्थापना की थी और योग्र्श्वर भगवान श्रीकृष्ण के गीता में कहे गए वचनामृतः आज भी कई भक्तों की साधना है |

स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण में कहा गया है की श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो 'जयंती' नाम से संबोधित की जाएगी। 

वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णु रहस्यादि में कहा गया है की कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नाम वाली ही कही जाएगी।

वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है। अन्त्य की दोनों में परा ही लें।

इस तरह से कई पुराणों और उपनिषदों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बताया गया है | और श्रीकृष्ण के जन्म के पावन अवसर को जो प्रेमी भक्तजन पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से मनाते है उनका जीवन खुशियों से भर जाता है, और उसपर विपत्ति और संकट कभी नहीं आते है | शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा गया है कि भगवान कि भक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करने वाले भक्त भवसागर से तर जाते है अर्थात मोक्ष को प्राप्त होते है |

(वासुदेव सर्वम् )

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