श्री रामचरितमानस में नवधा-भक्ति
प्रथम भक्ति संतन सत्संगा |
दूसर मम रति कथा प्रसंगा ||
गुरु पद पंकज सेवा, तीसरी भक्ति अमान |
चौथी भक्ति मम गुन गन, करहीं कपट तजि गान ||
मंत्र जाप मम दृढ विश्वासा |
पंचम भजन सो वेद प्रकाश ||
छठ दम शील विरति बहु करमा |
निरत निरंतर सज्जन धरमा ||
सातवँ सम मोहिमय जग देखा |
मोते संत अधिक करि लेखा ||
आठवं यथा लाभ संतोषा |
सपनेहुँ नहीं देखई पर दोषा ||
नवम सरल सब सन छल हीना |
मम भरोस हियँ हरष न दीना ||
नवम हूँ एकउ जिनके होई |
नारी पुरुष सचराचर कोई ||
सोई अतिसय प्रिय भामिनी मोरे |
सकल प्रकार भगति दृढ तोरे ||
(रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड)
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में भी नवधा भक्ति का उल्लेख हुआ है | इसमें अरण्यकाण्ड में प्रभु श्री राम ने शबरी के प्रति भक्ति के इन नौ अंगों अर्थात नवधा भक्ति का उल्लेख किया है | इस प्रकार दी गई नवधा भक्ति का विधिपूर्वक अनुष्ठान और हवन करने से मनुष्य को परमपद की प्राप्ति होती है, और सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है |
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