गायत्री महामंत्र की स्तुति, ध्यान तथा वंदना
ओम् भूर्भुव: स्वः तत्स वितुर्वरेर्ण्यं !
भर्गो देवस्य धीमहि धियो: योनः प्रचोदयात !!
हमारे वेदों, पुराणों और शास्त्रों में कई तरह के मन्त्र होते है, और देवताओं की स्तुति के लिए अलग मंत्र होते है तथा ध्यान के लिए अलग तथा वंदना के अलग स्त्रोत्र होते है |
परन्तु जप करने लायक इस गायत्री मन्त्र के लिए ऐसा विधान नहीं है, गायत्री मंत्र में जप, ध्यान, स्तुति और वंदना करने के लिए एक ही मंत्र का प्रयोग किया जाता है अर्थात गायत्री मन्त्र अपने आप में ही पूर्ण महामंत्र है और इस महामंत्र कि स्तुति, ध्यान और वंदना इस प्रकार है:-
स्तुति:- "ओम् भूर्भुव: स्वः"
इस मंत्र छंद से उस परमात्मा कि स्तुति की जाती है जो तीनो लोकों में व्याप्त है अर्थात जो अपने प्रकाशमान रूप से इस चराचर जगत में स्थित है और अपने तेज से इन तीनो लोकों को प्रकाशित करते है |
ध्यान:- "तत्स वितुर्वरेर्ण्यं भर्गो देवस्य धीमहि"
इस छंद में पाप का विनाश करने वाली माँ भगवती का शांत मन से चिंतन एवं ध्यान का वर्णन किया गया है |
प्रार्थना:- "धियो: योनः प्रचोदयात"
इस छंद से मंत्र कि शक्ति के द्वारा बुद्धि एवं विवेक को सही दिशा में ले जाने और मोक्ष प्राप्ति की कामना कि गयी है | इस प्रकार से मानव जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने के लिए यह महामंत्र है और इस सिद्ध मंत्र का जाप निश्चित रूप से फलदायी होता है ऐसा मेरा मत है |
(श्री गायत्री नमः)
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