श्री अग्नि गायत्री मंत्र
श्री अग्नि देव को वेदों में आग अर्थात तेज का देवता माना गया है, और सभी यज्ञादि कार्यों को अग्नि देव के सहायतार्थ ही संपन्न किया जाता है | पुरानों में यह भी मान्यता है कि आप यज्ञ और हवं में जो कुछ भी अग्नि में अर्पित करते है वह सभी देवताओं तथा पितरों को प्राप्त हो जाता है |
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Agni Dev |
पुराणों के अनुसार अग्नि देव के दो सिर है तथा पत्नी का नाम स्वाहा, उनका वाहन मेंढा (भेड़) है, और ऋग्वेद के अनुसार इनको इन्द्रा और वरुण देवता के समतुल्य माना और पूजा जाता है |
अत: अग्नि देव गायत्री मंत्र इस प्रकार है :-
In Hindi:-
ऊँ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्याय धीमहि |
तन्नो: अग्नि प्रचोदयात ||
In English:-
Ohm Mahajwalay Vidmahe Agni Madhyay Dhimhi |
Tanoo: Agni Prachodayat ||
इस अग्नि गायत्री मंत्र का जप करने से मन और तन में तेजस्विता (तेज) आता है | तथा अग्नि और उष्णता सम्बन्धी कष्टों का निवारण होता है |
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